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– मैंने व्यर्थ ही जिन्दगी गँवायो रे!

मैंने व्यर्थ ही जिन्दगी गँवायो रे!
कभी राम नाम लिया तो नहीं ।
मैंने व्यर्थ ही जिन्दगी गँवायो रे!
नर तन लेकर इस जहां में
आया नारायण को पाने को ।
भोग-विलास में रमा रहा ।
याद न आया कभी नारायण को ।।
मैंने व्यर्थ ही जिन्दगी गँवायो रे!
कभी राम नाम लिया तो नहीं ।
मिथ रिश्ते-नातें में मैं यूँही बँधा ही रहा ।
कभी साँचा रिश्ता याद आया ही नहीं ।।
मैंने व्यर्थ ही जिन्दगी गँवायो रे!

कभी राम नाम लिया तो नहीं ।।
मोह-माया के इस जन-जाल में
मैं यूँही जकड़ा ही रहा ।
कभी राम नाम सुमिरा तो नहीं ।।
मैंने व्यर्थ ही जिन्दगी गँवायो रे!
कभी राम नाम लिया तो नहीं ।।
आस-निरास के बंधन में यूँही बँधा ही रहा ।
कभी श्रद्धा और विश्वास में रमा तो नहीं ।
शिव-पार्वती को सुमिरन कभी किया तो नहीं ।
मैंने व्यर्थ ही जिन्दगी गँवायो रे!
कभी राम नाम लिया तो नहीं ।।
 विकास कुमार

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