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मैं (अहंकार)

मैं मन की भाव हूँ, अहंकार से लिप्त हूँ l
मैं लोभ , मैं मोह माया का जाल हूँ l
मैं हिंसा का रूप, मैं विनाशकारी हूँ l
मैं यूं ही बदनाम हूँ, वरना मैं विश्वकर्मा हूँ ll
मैं अनंत हूँ , विष भी मैं हूँ l
मैं चक्रव्यूह, मैं महाभारत हूँ l
मैं कौरव नाशक, रावण, मैं ही कंश हूं l
मैं तो यूँ ही बदनाम हूँ, वरना श्रीकृष्ण, जटाधारी हूँ ll
मैं निराकार हूँ, काली, दुर्गा भी मैं हूँ l
मैं वहुरूप्या हूँ, किसी को भी हर लेता हूँ l
हर संगत में ढल जाता हूँ, संगत जैसी वैसा बन जाता हूँ l
मैं यूं ही बदनाम हूँ, वस यूं ही……….. ll

                                         Rajiv Mahali

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