मैं कुछ बोल नहीं सकता ;
…. …………….तुम्हारा दिया हुआ जख्म;
किसी के समाने खोल नही सकता।
जब बहती पुरबा हवा बहुत दर्द होती;
पर मै रो नही सकता ।
क्योंकि आँसु को बनाए है दुल्हन ;
मै कैसे खो सकता; ( रो सकता)
ए पुरबा हवा—-
थोड़ी अपनी रुख बदल जा पश्चिम की ओर ;
. मेरी दर्द की दास्ताँ सुना उसे जाके
कही फितरत बदल जाय।
मैं रो नही सकता खो नही सकता।
आँसु को बनाए है दुल्हन मैं रो नही सकता।।
ज्योति
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