मैं जितना सुलझता गया वो उतनी उलझती गई,
मेरे दिल में उतरती गई आँखों से छलकती गई,
डोर इतनी मजबूत बंधी उसकी जुल्फों से जानो,
के “राही” की राहें जैसे खुद ब खुद सँवरती गई।।
राही अंजाना
मैं जितना सुलझता गया वो उतनी उलझती गई,
मेरे दिल में उतरती गई आँखों से छलकती गई,
डोर इतनी मजबूत बंधी उसकी जुल्फों से जानो,
के “राही” की राहें जैसे खुद ब खुद सँवरती गई।।
राही अंजाना