दुनियाँ का कोई कानून चलता नही। रौशनी का दिया कोई जलता नहीं। कोशिशें अमन की दफन हो गयी हर मुद्दे पे बंदूक चलन हो गयी॥ कुछ अरसे पहले मैं गुलजार था। इस बियाबान जंगल में बहार था। आधियाँ फिर ऐसी चलने लगी। नफरतों से बस्तीयाँ जलने लगी। मैं आसरा था भोले भालों का मैं बसेरा था मेहनत वालों का। जर्रा जर्रा ये मेरा बोल रहा है दरदे दिल अपना खोल रहा है। अबूझ वनवासियों का मैं घर हूँ।। आके देखो मुझे मैं बस्तर हूँ।। तुम सम्हालो मुझे,मैं बस्तर हूँ। तुम बचालो मुझे, मैं बस्तर हूँ॥
दंडेवाड़ा से झिरम के घाटी तक। चारामा से कोंटा के माटी तक।। अपने ही घर में मैं शरणार्थी हूँ। हे।देन्तेश्वरी मै क्षमा प्रार्थी हूँ। अस्मत बेटियों का कौन लूट रहा। न्याय के मंदिर से कातिल छूट रहा। पहरेदार और माओ जब लड़ने लगे। शक में हम बेकसूर यूं ही मरने लगे।। मुखबिर समझकर माओ ने मारा। पहरेदारों को भी है तमगा प्यारा। नक्सलवाद से जला मैं वो शहर हूँ। तुम बचालो मुझे, मैं बस्तर हूँ तुम सम्हालो मुझे,मैं बस्तर हूँ। तुम बचालो मुझे, मैं बस्तर हूँ॥
कुंटुमसर के घुमने वालों चित्रकोट में झूमने वालो तिरथगढ़ में नहाने वालों इंद्रावती के चाहने वालों रो रहा हूँ मैं फरियाद सुनो छत्तीसगढिया भाई आवाज सुनो। हिन्दुस्तानी आवाम सुनो। रायपुर के हुक्मरान सुनो॥ मत काटो जंगल झाड़ी को पहचानों तुम शिकारी को उजाडो मत इस आशियाने को आदिवासी तरस रहे हैं खाने को अबूझ हल्बा मडिया और भतर हूँ आके देखो मुझे, मैं बस्तर हूँ॥ तुम सम्हालो मुझे,मैं बस्तर हूँ। तुम बचालो मुझे, मैं बस्तर हूँ॥
लाल सलाम के इस दंगल में। बारुद बिछ गया है जंगल में। जिन्दगी यहाँ पर महफूज नहीं। मौत भी यहाँ रहकर खुश नहीं। हर घर से जनाजा उठ रहा है। शमशान को कौन पुछ रहा है॥ नौजवान खुलकर बोलता नहीं। दर्द है दिल में मगर खोलता नहीं।। कनपटी पे सबके बंदूक तना है। दरिंदा, हमारा मसीहा बना है। सलवा जुडूम में मैं मरता रहा। बदूंको से निहत्था लडता रहा।। नक्सलवाद में गुमराह हुये मेरे बच्चे देखो तबाह हुये॥ तबाही का मैं वो, मंजर हूँ। आके देखो मुझे, मैं बस्तर हूँ। तुम सम्हालो मुझे,मैं बस्तर हूँ। तुम बचालो मुझे, मैं बस्तर हूँ॥
शौक से यहाँ तुम उद्योग लगावो पर रहे हम कहाँ ये भी बताओ। अब महुआ बिनने जायेगा कौन। चार तेदुं जंगल के लायेगा कौन।। कौन सुनाएगा फिर अमिट कहानी। दिखाएगा कौन शबरी की निशानी।। हद से जियादा हमारी चाह नहीं। सोने चादीं का हमको परवाह नहीं। दो जून की रोटी ,और परिधान मिले। अपने ही माटी में,हमें सम्मान मिले। बस इतनी सी हमारी जो चाहत है। इस पर कहते हो आप आफत है।। मजाक मत उड़ाओ मेरे भोलेपन का। कुछ तो सिला दो मेरे अपनेपन का। बुद्ध भी हूँ मै,और मैं ही गदर हूँ। आके देखो मुझे,मैं बस्तर हूँ॥ तुम सम्हालो मुझे,मैं बस्तर हूँ। तुम बचालो मुझे, मैं बस्तर हूँ॥ ओमप्रकाश अवसर पाटन दुर्ग 7693919758