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मैं हर बात पर रूठ जाता हूं

जरा सी बात में टूट जाता हूं ,
गुस्से से आकर फुट जाता हूँ।
लोग समझते है आदत है मेरी
मैं हर बात पर रुठ जाता हूँ।

हृदय पर हल्की घाट होती है,
बिना बात की बात होती है।
बढ़ जाता है द्वेष का किस्सा,
फिर मन मे खुराफात होती है।।

गलतफहमी धीरे से बढ़ जाती है।
गुरुर दिमाग में गढ़ जाती है।
मन मे बनती है ख्याली पुलाव,
कुछ और ब्यथा बढ़ जाती है।।

बुराई का मैं सरताज नही हूँ।
बुझदिलों का आवाज नही हूँ।
प्रलयकारी होता है संबंध टूटना,
झूठे रिश्तों का मोहताज नही हूँ।।

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