Site icon Saavan

मैत्री

वृत्ति मान्गकर जीवन यापन करने वाले
के अंतरंग द्वारिकाधीश थे
निज हाथों से सुदामा के चरण पखारते
सच्चे मित्र श्रीकृष्ण थे ।।
मित्रता हो ऐसी जहाँ भेद न कोई रह जावै
मित्र का दुख स्वदुख से भी ज्यादा कष्टप्रद लागै
सुग्रीव के दुख से जैसे दुखी जगदीश थे ।
बिन मांगे, कष्टोंसे बचाने,हाथ जो खुद आगे आवे
सही मारने में साखी कहलाने का पद वो पावे
ऐसो संगी रब से मिला बख्शीश है ।।
गुरूकुल में शुरू,छोटी सी थी जिनकी कहानी
मित्रता निभाई ऐसे,जैसे कर्ज हो सदियों पुरानी
यूँ ही साथ निभाना जैसे निभाये श्रीकृष्ण थे
Happy friendshipday

Exit mobile version