मोहब्बत की नज़्मों को फिर से गाया जाए
अपनी आज़ादी को थोड़ा और बढ़ाया जाए
हक़ मिला नहीं बेआवाज़ों को आज तक
हक़ लेना है तो अब आवाज़ उठाया जाए
किसी इंसान को भगवान बनाने से पहले
हर इंसान को एक इंसान बनाया जाए
कैसे बनेंगे हर रोज़ नए नग़मे
क्यों न पुराने नग़मों को ही फिर से गाया जाए
गिरने वालों को उठाने की बात करते हैं
क्यों न लोगों को गिरने से बचाया जाए
बहुत हो चुकी मज़हबी बातें और सियासी बिसातें
अब सियासत से मज़हब को हटाया जाए ।
तेज