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मोह

उड़ चलता है हर पक्षी घोंसला बनाने
होते ही उम्मीदों का सवेरा
श्याम को थक्कर ढूंढता फिरे
अपना ही रैन बसेरा
भटकती फिरे हर मधुमक्खी
फूल फूल पत्ता पत्ता
करके शहद इकट्ठा
हजारों फूलों को छानती
बार-बार पहुंचती देखने अपना छत्ता
इंसान भी मोह का पुलिंदा हैमो
परिवार की फिकर उसे सताती रहती है
मुंह के बस में हर प्राणी
सृष्टि सारी यही कहती है

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