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मौन संवेदना

तेरे नैनों में मेरे नैनों से कल कुछ कहा था ,
तुम्हें याद है !!
कि भूल गए तुम !
वह गहरी बात जो शायद तुम जुबां से ना कह पाते ,
समुंद्र से गहरे मन को बिधतै, नाजाने कौन सा पथरीला रास्ता पार करके ,
कैसे पहुंच गए सात तालो से बंद उस मन मंदिर में !
और एक दीप भी जला आए, चुपचाप अचानक ,
नैनो ही नैनो में एक ग्रंथ की रचना हुई प्रकृति मौन थी धरा अचंभित ।
गगन चमत्कृत सा देख रहा था ,
पूरा ब्रह्मांड साक्षी था
पर जुबान पर ताला था ऐसे जैसे कुछ हुआ ही नहीं था ।हलचल हलचल जो शांत होती गई ।मौन होहोई चुप्पी साधे
क्योंकि अब मन मंदिर में नहीं जुबां पर ताला था ।
निमिषा सिं घल

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