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मौला

साद और बर्बाद भी हुआ मौला
प्यार भी किया नफरत भी किया मौला

गुनाह भी किया मौला
शफा भी किया

अंत में रुका जहा तोह पिटारा खाली था
जो कमाया वोह रह गया मौला

तू कही भी नहीं दिखा मौला
बस लोग थे गिने चुने

हर बंदे मै तेरा अक्स है शायद
और मै मन्दिर मस्जिद तुझे छानता फिरा

काश कुछ पल होते कुफरत के होते
कुछ लोगों का भला भी हम करते

मौत के बाद का पता नहीं
कुछ लोगों के चेहरे की मुस्कान की वजह बनते

कुफरत-क्रूसेड
साद-अछी किस्मत
शफा-इबादत खुदा की

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