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यतीम ख़्वाब

बारिश में भीगे कुछ ख्वाब..
कल उठा कर लेता आया,

सुखा कर इन्हें,
पूछुंगा आज..
कहाँ से आए?
किसने छोड़ा तुम्हें सड़कों पे?

अखबार में इश्तिहार दे दूंगा..
जिसके हों… वो ले जाये..

कुछ दिन कमरे में रख के..
थोड़ी खुशबू समेट लूँ तो,
ये अंधेरा ज़रा कम हो जाए..

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