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याचना अपनी बीमार मां के लिए

ढूंढता है उन लम्हों को
जहां सिर्फ अपनापन था
अधिकार मां पर सिर्फ अपना
नहीं दबाव किसी का था।।
जहां हक था
भाई से बातें करने की
पिता से लाङ जताने की
मां के आंचल में छिप जाने की
न डर था किसी के तोहमत का।।
मां के गोद में सर अपना रखूं
या उनके हाथों का सहारा बनूं
उनके दर्द सब हरके,हर पीर सहूं
क्या मर्ज करूं, उनकी परेशानी का।
जन्म दिया, पालन पोषण क्या सोच किया
पठन पाठन करवा के, गैरों को सौंप दिया
घर‌ बसे मेरा, पतवार सा रूप लिया
हक नहीं क्यूं आज़ तेरे संग रहने का।
बीमार है तूं, पर किसके खातिर
अबतक जीते आई तूं औरों की खातिर
कुछ दिवस ऐसे हों, तेरा जीना हो तेरे खातिर
अधिकार है तुझे भी‌ हर सुख सुविधा पाने का।
अब कुछ दिन जियो मेरे लिए
पास रहूं, मैं पहनूं फिर कपङे तेरे सिले
सुबह उठते ही तेरे चरणों की झलक मिले
काम से लौटूं तो तेरी चाय की ललक रहे
हमें भी हक तेरे साथ खुश रहने का।।
“सुना है दुआओं में बहुत असर होता है।आप सब से प्रार्थना है एक बार सच्चे मन से मेरी मां के लिए दुआ कीजिए।”
“मेरी मां जल्दी से स्वस्थ हो जाए!”

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