शाम का समय
सूरज विश्राम करने को तत्पर
दिन पर तपने के बाद
सारी दुनिया तकने के बाद
अपूर्ण ख्वहिशे दिन भर की
मन में रखे हुए
ये सोंच कर
कि चलों रात में
चन्द्रमा की शीतल छाया होगी
पर ये क्या
ये तो अँधेरी रात थी
केंवल घनघोर अँन्धेरा दिख रहा चारों ओर
असमय ही बादलों ने बरसात की
तन तो भीग गया
पर मन अतृप्त रहा
अपने अतृप्त मन के साथ सूरज
रात में यात्राएं करने लगा
इस छोर से उस छोर तक
बिन बात भटकने लगा
वो कुछ सोंच रहा था
कोई छोर खोज़ रहा था
जिसको पकड़ कर
वो पार कर जाए
वैतरणी को
थोड़ी मुक्ति मिल जाए
उसकी गर्मी को
दिन में वह तपा था
रात में भी तपता रहा
दिन में थका था
रात में भी थकता रहा
कुछ न कर सका
मात्र छोर बदलता रहा
कई रातें वह सो न पाता
सू रज है रो भी नहीं पाता
हर सुबह उठ कर
चल देता है
दुनिया को रोशनी देने
अपनी अनंत यात्रा पर
हर बार
बार बार । तेज