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याद है आज भी वो दिन

याद है आज भी वो दिन
जब किताब के बीच
कोई फूल दबा देते थे
और खाली लम्हों को
उस सूखे फूल से महकाया करते थे

याद है आज भी वो दिन
किताबों के पन्नें मोड़ देते थे
इक निशानी के तौर पर क़ि,
फिर कहाँ से शुरू करना है
याद रखने के लिए

याद है आज भी वो दिन
कुछ जरूरी अध्याय को
रेखांकित कर देते थे
ज्यादा ध्यान लाने के लिए
रंगों से सजा देते थे
किताबों के जरूरी पन्नें

याद है आज भी वो दिन
बिखर जाती थी रोशनाई
इन किताबों पर और
चाक के टुकड़े से सोखते थे
स्याही के धब्बों को, कहीं
धब्बों का अक्स न पड़ जाये

अब के दिन याद नहीं रहते
सुना था ज़िंदगी भी
एक किताब होती है
बस किताब समझ कर
जीने लगे ज़िंदगी
और बस कुछ न समझा

अब के दिन याद नहीं रहते
ज़िंदगी की किताब के
दबे पन्नो में मुरझाये फूल से
ख़ुश्बू नहीं मिलती ,सच तो ये
ताज़े फूलों की खुश्बूं भी
लगता कोई चुरा ले गया

अब के दिन याद नहीं रहते
ज़िंदगी के जरूरी अध्याय
के पन्नो को मोड़ तो दिया
पर ज़िंदगी को फिर कहाँ से
शुरू करना है ये पता ही नहीं
बस पन्नें मुड़ते ही जा रहे है

अब के दिन याद नहीं रहते
रोशनाई बिखर गई है
ज़िंदगी के बिखरे पन्नो पर
कोई चाक इसे सोख नहीं पाती
इनके धब्बों का अक्स गहराता हुआ
कई पन्नो पर निशां छोड़ गया है

अब के दिन याद नहीं रहते
ज़िंदगी के जरूरी अध्याय को
रेखांकित करता रहा
अलग अलग रंगों से
पर इस पर ध्यान नहीं जाता
अरेखांकित भाग पर ही
ध्यान टिक जाता है

अब के दिन याद नहीं रहते
मैं तुम्हे इक किताब समझ
जीने लगा था ,पर तुम निकली
मेरे बिखरे पन्नें ,जिस में कोई फूल
दबा कर मैं रख नहीं पाया

ज़िंदगी तुम किताब नहीं
बस बिखरे पन्नें हो
बस बिखरे पन्नें
जिसे बस समेटता
फिर रहा हूँ रात दिन

याद है आज भी वो दिन, पर
अब के दिन याद नहीं रहते

राजेश’अरमान’

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