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रचनाकार

तुम कविता का विषय बनो
और मैं कविता का रचनाकार
चलो इस तरह से रच लेते हैं
कुछ कविताएँ दो – चार
मौन रहें और बोलते रहें
हम दोनों के नयन
तुम ऐसे मुस्कराओ
उसमें हों छुपी हजारों बातें
नयनों की भाषा पर
भाव तुम्हारे प्रकट करूँ
और उतार सकूँ कागज पर
तुम्हारे कोमल भाव
और उन्हें फिर दे दूँ
इच्छित शब्दों का आकार
चलो इस तरह से रच लेते हैं
कविताएँ दो – चार
ऐसे अपने केश भिगोना
जैसे सावन की बरखा
की टपकें उनसे बूंदें
मन भी सावन सा नहा उठे
ऐसे भीगें तुम्हारी पलकें
ऐसे कविताकार बने

– रीता अरोरा

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