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राज गोरखपुरी

फिर वही रात की उदासी है.
ज़िस्म बेकल है रूह प्यासी है.
मारती है न जीने देती है,
याद तेरी बड़ी सियासी है.

—–डॉ.मुकेश कुमार (राज गोरखपुरी)

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