राज गोरखपुरी डॉ.मुकेश 8 years ago फिर वही रात की उदासी है. ज़िस्म बेकल है रूह प्यासी है. मारती है न जीने देती है, याद तेरी बड़ी सियासी है. —–डॉ.मुकेश कुमार (राज गोरखपुरी)