शेषांश,,,,,,,,,
दो रुपये का ब्लेड भला दाढ़ी काटे फिर उग आये।
मुट्ठी एक चना से भूखा अपनी भूख मिटा पाए।।
लो मैडमजी आ गए हम महिला काॅलेज के द्वारे।
दस के बदले बीस रुपये देने लगी मैं उसको भाड़े।।
वह बोला मैडमजी मुझपे क्योंकर कर्ज चढ़ाती हो?
दस रुपये के कारण क्यों मेरा इमान हिलाती हो?
कर्ज नहीं है तेरे ऊपर मेहनत का इनाम है ये।
सदाचार की करे प्रशंसा पढ़े लिखे का काम है ये।।
देना चाह रही हो आप तो इतनी विनती करना।
सबके जीवन में खुशियाँ हो प्रभु से विनती करना।।
कल प्रातःकाल की बेला में सबको एक खुशी हो।
मेरे संग संग सबके मुख पर हर्षित मधुर हँसी हो।।
रविवासरीय अखवार देख चौंक गई मैं एकाएक।
वही बेनाम रिक्शावाला पन्ना पे बैठा आलेख।।
मेहनत आज रंग लाया रिक्शावाला आई़ ए़ एस़ था।
रोशन नाम किया अपना जग में नहीं वह बेबस था।।
विनयचंद नहीं रुप रंग ज्ञान बुद्धि व मेहनत हो।
कोयला हीं हीरा बनता है भूगर्भ में अवनत हो।।
पं़विनय शास्त्री