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रितुराज के आवन पे

रितुराज वसंत के आवन पे
बसुधा ने कण कण सजा लिया है ।
शबनम की बारिश से धरणीधर
और तृण तरुवर सब नहा लिया है।।
पत्र पुराने त्याग दिए बृक्ष सब
नव किसलय तन चढ़ा लिया है।
कुछ रक्तिम कुछ हरे -हरे
बगिया ने नव परिधान सजा लिया है।।
पहन पुष्पों का आभूषण
कुदरर ने निज अंगों को सजा लिया है।
फूलों ने भी कसर न छोड़ी
खुद को खुशबू से महका लिया है।।
पत्र -पुष्प से सज गई धरती
पतंगों से नीलाम्बर भी सजा लिया है।
भ्रमर तितलियाँ कोयल संग
“विनयचंद “ने भी कुछ गुनगुना लिया है।।

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