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रुको ए मुसाफिर

रुको ए मुसाफ़िर अभी ना जाओ .

डस लेगी ये काली अँधेरी रात तुम्हे,

सहर तलक ठहर जाओ .

दूर है मंजिल तुमसे- राहे अनजान है,

डर है कहीं भटक ना जाओ .

कहीं एसा ना हो कोई अनजान पीछे से-

हाथ पकड़ कर आवाज़ दे तुमको,

और तुम बहक जाओ .

देखने दुनियां के तमाशे को –

लगी है भीड़ हर तरफ,

डर है कहीं तुम खो ना जाओ .

रुको ए मुसाफिर अभी ना जाओ .

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