रुबाई कविता 8 years ago जुस्तजू जिसकी थी वो मिला ही नहीं अब ख़ुदा से भी कोई गिला ही नहीं दर्द के नूर से रूह रौशन रहे इसलिए ज़ख्म दिल का सिला ही नहीं कविता सिंह