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रूह

छोड़ कर एक जिस्म को एक जिस्म में जाना होता है,
बस यही एक इस रूह का हर एक बार बहाना होता है,

रूकती नहीं बड़ी मशरूफ रहती है ज़िन्दगी सफ़र में,
कहते हैं के इसका तो न कोई और ठौर ठिकाना होता है,

बदलकर खुश रहती है ऐसे ही वो चेहरे ज़माने भर के,
मगर सच ही तो है इसका न कोई एक घराना होता है,

चार काँधों पर निकलती है फिर बदलती है रूप पुराना,
इंसा को तो बस उसे दो चार ही कदम टहलाना होता है।।

राही अंजाना

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