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लक्ष्मण और मेघनाद का युद्ध

लक्ष्मण और मेघनाद का युद्ध

आ गया अंततः वह भी क्षण
आरंभ हुआ समर भीषण।
दो वीर अडिग, अटल वीरत्व
था साक्ष्य धरा का तत्व तत्व।
एक ओर अहीश स्वयं लक्ष्मण
है मही सकल टिकी जिनके फण।
डटे सामने मेघनाद
ले शुक्र से शिक्षा का प्रसाद।
एक इंद्र जयी एक सूर्य वंश
दोनों ही में क्षत्रीय अंश।
वाणों में पावक सदृश घात
नैत्रों में जैसे रक्तपात।
तीरों से तीर प्रचण्ड लड़े
सब देव असुर थे स्तब्ध खड़े।
न कोई आधिक न कोई कमतर
दोनों का ही वीरत्व प्रखर।
जब विफल हुए सारे आघात
किया मेघनाद ने शक्तिपात।
जब शक्ति प्रबल ये लगी उदर
गिरे लखन मुर्छित भू पर।
बोला फिर धूर्त अहम से भर
ले चलो लक्ष्मण को पिता के दर।
पर लक्ष्मण थे कितने भारी
ना समझ सका अंहकारी।

हैं धरा उठाए शेषनाग
उन्हें कैसे उठाए मेघनाद।
जब सूर्य देव हो रहे अस्त
एक सूर्यवंशी थे गिरे पस्त।
सुन दोड़े आए रघुराई
क्योंकर ये हुआ मेरे भाई।
हृदयांश अनुज को युं निहार
बह चली नैत्र से अश्रु धार।
हो गई त्रासदी ये क्योंकर
पूछा प्रभु ने व्यथित होकर।
लक्ष्मण हुए मुर्छित जिस क्षण में,
हनुमान नहीं के क्या रण में।
भाई भरत यदि होते
लक्ष्मण मुर्छित न कभी होते।
महावीर खड़े कुंठित होकर
नैत्र गहन ग्लानि से तर ।

नरेन्द्र सिंह राजपुरोहित

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