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ललित सरिता

जीवन ज्योति की एक
ललित सरिता बहे
सुंदर सुकोमल कविता बने,
हो चहुँ ओर प्रकाश फैला हुआ
मेरी लेखनी में वो बात रहे।
नहाए हुए से लगे शब्द मेरे
भाव तो जैसे खो ही गए हैं
बिछड़ गए जो वो फिर ना मिले हैं
कितनी दूरियां आ गई हैं दर्मियां
हमदर्द जो थे वो ना मिले हैं ।
तभी तो ये “जीवन डोर”🌹 संभलेगी
प्रज्ञा’ इश्वर से जा मिलेगी।

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