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वक्त्त

सावधान करती हूं कवियों को
ना लेना पड़ जाए लिखने से जोग
हवा झूठ की चल पड़ी है
सच्चे शब्दों से रुठे हैं लोग.

कितना समझा लोगे तुम उनको
जमाना बहुत ही संगदिल है
जिस तरह गीले कागज पर
शब्दों का लिख पाना मुश्किल है.

सच्चा साथ निभा कर
दुआएं बहुत सी ले आना
धन दौलत कमा कर क्या करोगे
मुश्किल है इसको ऊपर ले जाना.

झूठ का चाहे कितना भी चढ़े फितूर
सच की राह पर चलना हुजूर
वक्त तो रेत की तरह फिसलता रहता है
एक दिन वक्त भी बदलेगा जरूर.

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