झर झर नीर झरे नैनन से
बीच हथेली रख मुखरे को।
बिलख बिहारी विनती करते
वो कैसे सहेगी इस दुखरे को।।
देर भयो ग्वारन संग खेलत
भूखा प्यासा लाल तुम्हारो।
फिर भी मैया मारन चाहे
पकड़ हथेली मुझको मारो।।
चोट लगे केवल माँ मुझको
छाले दाग न लगे हाथ को।
विनयचंद ‘ कभी पीड़ न आवे
आरतहर के वरद हाथ को।।