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वादा

जब ज़िन्दगी कर रही होगी
अंत निर्धारित हमारी कहानियों का
जब वक्त की धुंध छँट जायेगी और
साफ़ नज़र आने लगेगा चेहरा मौत का..!!

जब उम्मीदों के पखेरूओं को रिहाई देकर
नियति के आगे नतमस्तक हो जाओगे तुम
जब वक्त के निर्मम पैरों के नीचे
दबे सपनों की लाशें समेट रहे होंगे तुम..!!

जब दुःख का रंग गहरा कर
जज़्ब हो चुका होगा तुम्हारी आत्मा में
जब तुम्हारे भीतर का ख़ालीपन
एक चेहरा लिए खड़ा होगा तुम्हारे सामने..!!

तब भी, हाँ तब भी
तुम्हारी राह के अँधेरे मिटाती मिलूँगी मैं
आख़िरी साँस तक
तुम्हारे दिल का द्वार खटखटाती मिलूँगी मैं..!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’

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