*एक विदाई गीत*
हरे हरे कांच की चूड़ी पहन के,
दुल्हन पी के संग चली है ।
पलकों में भर कर के आंसू,
बेटी पिता से गले मिली है ।
फूट – फूट के बिलख रही वो,
फूट – फूट के बिलख रही वो,
बाबुल क्यों ये सजा मिली है,
छोड़ चली क्यों घर आंगन कू,
बचपन की जहाँ याद बसी है,
बाबुल रोय समझाय रह्यो है
बेटी ! जग की रीत यही है,
राखियो ख्याल तू लाडो मेरी,
माँ – बाबुल तेरे सबहि वही है
नजर घुमा भइया को देखा
भइया काहे यह गाज गिरी है,
में तो तेरी हूँ प्यारी बहना,
यह अब कितनी बात सही है,
भइया सुनकर बोल बहन के,
अंसुअन की बरसात करी है,
रोतो रोतो यह भइया बोलो-2
देख विधि का विधान यही है,
बीत रही जो तेरे दिल पे बहना
“मेरा” भी अब हाल वही है ।।
© नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
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