Site icon Saavan

विरासत

जब मां की कोख में
मेरी जिंदगी पल रही थी
मेरे बाप की चिता भी
श्मशान में जल रही थी
जब हमने इस दुनिया में
अपनी आंखें खोली
देखी खून की होली
सुनी बंदूकों की गोली
चारों तरफ बनता गया
बस मौत का ही नक्शा
सुहागन तो सुहागन
विधवा को भी ना बक्शा
मैंने जब धरती पर
कदम रखकर चलना सीखा
बदले की आग में साथ ही
हमने जलना सीखा
उठा ली बंदूक हमने
किया मौत को हिरासत
क्योंकि मेरे अपनो से मिली थी
यह दौलत हमें विरासत।
वीरेंद्र सेन प्रयागराज

Exit mobile version