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वोटों की राजनीति

आरक्षण बनाम वोटों की राजनीति
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आरक्षण उन लोगो के लिये था जो पढना चाहते हैँ पर पैसे से लाचार है।
लेकिन अपने निजी स्वार्थ व वोटो के राजनीति के चलते नेताओ ने इसे जातिवाद का जामा पहनाकर, समान नागरिकता रखने वाले वर्ग को आरक्षण रूपी चादर पहनाकर उन्हे अनुसूचित जाति और जनजाति में तब्दील कर दिया और उन्हे एक तुच्छ वर्ग घोषित कर दिया।
भारतीय संविधान के अनुसार प्रतेक नागरिक को समान अधिकार प्राप्त है तो ये भेदभाव क्यु??
आरक्षण एक जाति विशेष को क्यों??प्रत्येक वर्ग के जरूरतमंदों को क्यो नही??
आरक्षण के नाम पर ऐसे वर्गो को तुच्छ,हींन भावना से ग्रसित क्यों बना दिया गया??

जिस विज्ञान,तकनीकी पर पूरे राष्ट्र के उन्नति छिपी है,उसी का बेड़ आ गर्क कयूं??
क्या ये राजनेता ऐसे चिकित्सको से इलाज़ कराना या बिल्डिंग बनवाना पसंद करेंगे??
कदापि नही,उनके लिए तो गोल्ड मेडलिस्ट,टॉपर्स ही बुलाये जाएंगे।
तो फिर हमारे भारत वर्ष ने क्या बिगाड़ा है!उसका बेड़ागर्क करने मैं क्यो जुटे हो???
काश की एक नियम होता की आरक्षित वर्ग को और आगे लाने के लिए राजनेताओं के सारे कामो का जिम्मा उन्ही का होता।तो अब तक हमारे देश के नेताओ की जनसंख्या भी काफी कम हो
चुकी होती।
प्रतिभाओं को आगे आने से ना रोके,
सूरज के समांन राष्ट्र को ग्रहण ना लगने दे।
आरक्षण उसी को दे जो वाकई में जरूरतमंद है

अगर आरक्षण नही चाहिए तो इस पोस्ट को आगे बढाये

….निमिषा सिंघल……

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