वो खिड़की के जानिब अगर देखते है
हर एक बार मुझको मगर देखते है
जो कूचे से निकला हूँ कल परसो मै
वो दीदार को हर पहर देखते हैं
गरीबी में क्या है सिवा आरज़ू के
वो समझेंगे कैसे जो घर देखते है
निगाहें हैं उस पर, यक़ीं एक दिन के
मिलेगा तो कुछ उसका दर देखते है
इधर वो कभी या उधर देखते है
ज़माने में हरसू कहर देखते हैं
कभी उसके जानिब वो दीदार करते
कभी मुझको भी इक नज़र देखते हैं
तू कब तक रहेगा सितारों के बिच
तेरे आने की हम डगर देखते हैं
क़त्ल करने का उनका इरादा है क्या
न जाने वो क्यों इस क़दर देखते है