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वो नदी सी थी, मैं किनारा सा….

वो नदी सी थी, मैं किनारा सा

कुछ ऐसा ही मिलन, हमारा था।

खुद में बस डूबते, उतरते रहे

न समन्दर था, न किनारा था।

उसने शायद, सुना नहीं होगा

मैने शायद, उसे पुकारा था।

कसूर ये नहीं कि किसका था

सवाल ये है, क्या तुम्हारा था।

बिना देखे, गुजर गए दोनों

मुड़ के फिर देखना गवारा था।

———सतीश कसेरा

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