वो परछाईं सा साथ चलता रहा है,
कभी दिखता तो कभी छिपता रहा है,
दिन के उजाले की शायद समझ है उसको,
तभी अंधेरे में ही अक्सर मिलता रहा है,
कभी चाँद सा घटता तो कभी बढ़ता रहा है,
हर हाल में वो मुझसे रुख करता रहा है॥
– राही (अंजाना)
वो परछाईं सा साथ चलता रहा है,
कभी दिखता तो कभी छिपता रहा है,
दिन के उजाले की शायद समझ है उसको,
तभी अंधेरे में ही अक्सर मिलता रहा है,
कभी चाँद सा घटता तो कभी बढ़ता रहा है,
हर हाल में वो मुझसे रुख करता रहा है॥
– राही (अंजाना)