उसे भी वो जख्म मिलें
जो उसने थे दिए
कुछ पल ही सही
हर वो लम्हा जिए
जो थे मेरे लिए बुने।
अपने हक़ के लिए
किस तरह तङपना मेरा
सब कुछ होकर भी
कुछ के लिए तरसना मेरा
अपनों से ही आहत
कौन भला उन कष्टों को गिने
हर वो लम्हा जिए
जो थे मेरे लिए बुने।
हर बात का बतंगड़ बनाना
जैसे है तितकी से आग लगाना
मुंह फुलाकर अपनी बातें मनवाना
बेबाक मुझपर तोहमतें लगाना
चाहकर भी कुछ भी भूले ना भूले
हर वो लम्हा जिए
जो थे मेरे लिए बुने।