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वो साथ तेरा

हाँ, नहीं हो तुम साथ मेरे ,
पर क्यों लगता है तुम पास हो मेरे !
हर घड़ी हर पहर जिंदिगी लगाती है अब ज़हर,
तेरी ये नाराज़गी, और कहर लगती है धुप की दोपहर!
तो क्या हुआ तुम ने छोड़ दिया साथ मेरा ,
अब मान लिया मैने नहीं है मेरा सबेरा l
गुज़र गए वो दिन गुज़र गए वो राते,
कितनी प्यारी थी तेरी साथ की बरसाते l
वो बारिश की बूँदे, वो शाम की चाय,
जो लम्हे तेरे साथ बीतये!
वो हाथ में हाथ डाल कर घूमना
वो माथे पे तेरा चूमना!
वो घंटो बातें करना,
दुनिया से मेरे लिए लड़ना,
याद है तम्हे वो रातो में जागना
और छोटी – छोटी बातो पे झगडना,
तो क्या हुआ भूल चुके हो तुम साथ
मेरा,
पर मैं कैसे भूलू वो मेरे लिए प्यार तेरा!
वो छोटे छोटे बातो पे मेरा रूठना,
और तेरा प्यार से मुझे चूमना!
दिल करता था तुम मानते रहो जिंदिगी भर,
और रूठती राहु मैं पल – भर।
तो क्या हुआ जो मैंने रूठना छोड़ दिया,
मैंने तेरी बेवफाई को ख़ुशी से जिया।
तेरे साथ मे बिताए वो पल लगता था अब ना होगी कल,
सही भी था, किसे फ़िक्र थी कल की जब साथ थी मैं
अपने दिल की!
तो क्या हुआ वो दिल ना रहा अब,
मुझे पता ना हुआ, हुआ ये कब!
तेरे उस झूठे प्यार को मैंने तो सच्चा माना,
खुश हु मैं, आज जो हसंता है मुझपे जमाना l
मुझे नहीं शिकायत है तुझसे
ना उस जिंदिगी से,
तो क्या हुआ अब वो जिंदिगी ना रही उस मोड़ पे,
उसने भी छोड़ दिया मेरा साथ तेरा साथ छोड़ते!

सौन्दर्या नीधि

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