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शर्माजी के अनुभव : मातृत्व

ढलता अंधेरा और काली सी महिला
बाजार किनारे खड़ी, हाथों में थैला
अजनवी थी मगर कुछ अलग था चेहरे में
जैसे खुशी खड़ी हो उदासी के पहरे में
बढ़ने लगा तो आवाज आई
कहाँ तक जा रहे हो भाई
मुड़कर कहा आपको कहाँ जाना है
मेरा तो गोविंद नगर में ठिकाना है
बोली मेरी मदद कर दीजिये
बड़ी कृपा होगी साथ ले लीजिये
मैंने कहा बैठिये, कृपा की कोई बात नही
वैसे भी आज खाली है बाइक, कोई साथ नही
लेकर उसको चल दिया, हम चुप ही रहे
वैसे भी कुछ नया नही था, कोई क्या कहे
कुछ देर बाद शुक्रिया कर उतर गई वो
आगे जाकर जेब टटोली कुछ ख़रीदने को
चौंक गया मैं, कटी जेब मे पैसे नही थे
पूछता था दुकानदार लाये भी थे, या नही थे
आज पहली बार मुझे मदद पर पछतावा हुआ
बड़ा नुकसान नही था चलो जो हुआ सो हुआ
गुजरता गया वक़्त मैं अब हर किसी को बताता
नेकी मत करो देखो, मुझको बुरी दुनिया का पता था
एक दिन फिर वही हुआ, जो हो चुका था पहले
मेरी पहचान ना कर पाई वो, था “हेलमेट” पहने
फिर वैसे ही ले जाकर उतार दिया उसको
मेरा गुस्सा ले गया लग लिया उसके पीछे को
कुछ दूर जाकर झोपड़ी में घुस गई चलते चलते
सच ही है चोरों के महल नही चुना करते
मैं भी झोपड़ी में चल दिया कुछ कर गुजरने को
मैं रह गया अवाक, देख मुझे चौंक गई वो
बच्चे को चम्मच से दूध पिला रही थी
मैं देख रहा बच्चा, वो मुझे देख रही थी
पूछा बाबू साहब, आपको क्या चाहिए
मैंने भी कह दिया, चोरी का हिसाब लाइये
सकपकाकर पैर पकड़, वो रो दी ऐसे
एक माँ नही हो, कोई बच्ची हो जैसे
मैंने कहा काम करो, हाथ पैर साबित है
बच्चे को भी चोर बनाओगी या तेरी आदत है
महिला ने कहा मैं चोर नही बाबू साहब
बताती हूँ मेरे साथ जो हुआ है सब
ये बच्चा मेरा नही, ये सहेली का है
मुझको समझ नही आया ये पहेली क्या है
आगे बोली सहेली तो मर गई बैसे
आखिर बलात्कार झेलकर जीती कैसे
बस तब से इसे पाल रही हूँ जैसे तैसे
काम पर जाने से डरती हूँ, कही मर न जाऊँ सहेली जैसे
इसीलिए ही मैं चोरी भी करती हूँ
बिन ब्याही माँ हूँ न, दुनिया से डरती हूँ
आंसू नही रोक पाया मैं ये हाल देखकर
माँ आखिर माँ होती है, कैसी भी हो रो दिया कहकर

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