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शाम दिखा देना

जरा सोचना पल भर के लिए,

दफन वो सारे जज्बात जला देना..

आना बस एक बार और मेरी कलम को,

ग्रहण की वो शाम दिखा देना..

सुन लेना मेरे मुंह से सत्य सराहना, तुम उन्ही शब्दों से मेरी पहचान बता देना..

शब्द दे दिये सारे तुम्हें उपहार में, तुम अपने शब्द आभूषणों का दाम बता देना..

ले जाना मेरी उजङी इस किताब को,

करना दफन या नफरत की आग में जला देना..

मिले न किसी को जो वो रोये इनको पढकर,

तुम सारी निशानियों का नामोनिशान मिटा देना..

~कविश कुमार

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