धुंध का गुबार सी
आधी नींद की खुमारी सी
इत्र और शराब सी
खिल उठे गुलाब सी
बादलों में बिजली सी
चंदन की महक सी
चांदनी रात सी
काली घटाएं जुल्फों सी
मल्लिका ए हुस्न सी
उस पर एक काला तिल उफ्फ
कहीं यह वही तो नहीं
जो नायिका हर शायर की गजल में छुपी।
निमिषा सिंघल