हृदय के गुहा में सघन था अंधेरा
ज्ञान की ज्योति जलाकर मिटाया।
लगते भैंस बराबर जो थे उसका
सम्यक अक्षर बोध कराया।।
मूढ़मति को निज कृपा दृष्टि से
ज्ञान जगत में मान दिखाया।
पिला के अमृत ज्ञान का मुझको
चिरजीवी संग अमर बनाया।
ऐसे शिक्षक गुरुवर को
‘विनयचंद ‘दिल से अपनाया।।