श्रद्धा से जो किया अर्पण,
सम्मान से खिलाया।
सच्चे अर्थों में वह ही,
श्राद्ध कर्म कहलाया
जीते जी ही दो मान,
पूरा दो उन्हे सम्मान
इच्छाएं पूरी कर दो,
खुशियों से दामन भर दो।
बाद मरने किसने खाया,
सिर्फ मन को था समझाया।
सोच सोच कर वह सब बनाया,
क्या-क्या था उनको पसंद!!
वह पंडित जी को खिलाया।
निमिषा सिंघल