अनपढ़ हैं वह सब पढ़े लिखे,
पढ़नेका मर्म जो जाने नहीं।
जो अभिमानी है दंभी हैं,
वे निपट गवार अज्ञानी है।
कर्मों में यदि सुधार नहीं,
तो कैसा तुम्हारा पढ़ना था।
संस्कार हीन इंसान नहीं
जीवन को करो ना बेकार यूं ही
तुमसे बेहतर वो पक्षी है
क्रमवार कहीं भी उड़ते हैं।
मनुष्य लगा आपाधापी में,
जानवर भी क्रम में चलते हैं।
भगवान ने दी है बुद्धि बहुत,
करो उसका इस्तेमाल सही।
कुछ अच्छे कर्म करो जग में
कुछ तो बने पहचान कोई!
निमिषा सिंघल