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सख्श

न अक्षर चुराने दिया न अक्स चुराने दिया,
मैंने दिल में बैठा जो न सख्श चुराने दिया,

बदलते रहे लोग चेहरे के मुखौटे आये दिन,
मैंने अपनी मोहब्बत का न नक्श चुराने दिया,

जुम्बिश अश्क बहाने की किसी काम न आयी,
‘राही’ तेरे आशिक ने कोई न रक्स चुराने दिया।।

राही अंजाना

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