जब शब्दों के बाण चलाने में
मर्यादा ना लागी जाए
जब सभी मन में प्राण यह ले ले
किसी और का हक ना खाएं
जात-पात और ऊंच-नीच के
जब सभी भेद मिटा दिए जाए
तब शायद सतयुग वापस आए
पन्नी में बंद करके बेटियां
जब कचरे में ना फेकी जाए
मेहनत बराबर करने पर भी
बेटो से कभी कम ना खाए
दरिंदों का कभी साया पड़े ना
बेखौफ हो बेटी पढ़ने जाए
तब शायद सतयुग वापस आए
जब भाई भाई के भाव को समझे
कोट कचहरी न समझाने आए
संपत्ति की तराजू में जब
रिश्तो को ना तोला आ जाए
बेमतलब की लडाईयो में जब
छोटे बड़े का लिहाज भी आए
तब शायद सतयुग वापस आए