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सपना

तेरे नैनो में यु समाता हूँ
बंद आंखे तो क्या
खुली आँखों में भी दिख जाता हूँ
तेरी अनहोनी को होनी कर
मैं सपना कहलाता हूँ

प्रगति का प्रथम चरन
तेरा मैं ही बढ़ाता हूँ
तेरे मन का आईना हूँ
तेरी हकीकत दिखाता हूँ

कभी पूरी नींद दिलाता हूँ
तो कभी बीच नींद में ही जगाता हूँ
तुम्हारा नजरिया हूँ
अच्छा तो कभी बुरा कहलाता हूँ

आमिर गरीब में समानता दिखाता हूँ
गरीब को भी विदेश घुमा लाता हूँ
मेरे को देखने में क्या जाता है

मजा तो तब आये
मेहनत कर मुझे पूरा कर जाओगे
सिर्फ मुझको देखके
ना कुछ पाए थे ना कुछ पाओगे

– हिमांशु ओझा

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