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सपनो के धुंदले बादलों के पार

सपनो के धुंदले बादलों के पार
एक चेहरा चमक जाता है
कभी अपना-सा, कभी पराया-सा
तरंगों को शूके बेक़रार कर जाता है

कोई तो है कहीं न कहीं न कहीं
जो हाथों की लकीरों में चमक जाता है
पलकों में यादें लिए होगा
कहीं तो कोई इंटर्जर करता है

एक नग्मा या भीगी सी ग़ज़ल
कोई अपने होंठों पे गुनगुनाता है
हो पास नहीं भी पर
अस्स-पास होने जा एहसास कराता है

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