गजल
सबको रस्ता दिखा रहा हूं मैं |
साथ ‘ मिट्टी उड़ा रहा हूं मैं |
इन दरख्तों में अब भी जिंदा हूं |
अपना साया मिटा रहा हूं मैं |
मुझको लाकर लिटा गए जबसे |
कब्रे – रौनक बढा रहा हूं मैं |
इश्क करना ही सीख लो मुझसे |
इश्क करना सिखा रहा हूं मैं |
आइने में नजर न आयेंगे |
ऐसे चेहरे बना रहा हूं मैं |
लोग मुझे बत्तमीज कहतें हैं |
खुद जो खुद का बता रहा हूं मैं |
वो रुलाती रही मुझे हरदम |
कह जिसे ‘ बेवफा रहा हूं मैं |
चाहता हूं लिपट के फिर रो लूं |
माँ तेरे घर से जा रहा हूं मैं |
आग अरविन्द मय्यसर लेना |
अपनी बस्ती जला रहा हूं मैं |
}-❥ कुमार अरविन्द ( गोंडा )