ये अल्फाज़ , अल्फ़ाज़ ही नहीं , दिल की ज़ुबानी हैं …..
इन्होंने ज़न्नत को , जो जमीं पर लाने की ठानी हैं …
साथ देने को कई मरतबा भीग जाती हैं पलकें …..
समझों तो यही मोहब्त हैँ , ना समझों तो पानी हैं…..
पंकजोम ” प्रेम “
ये अल्फाज़ , अल्फ़ाज़ ही नहीं , दिल की ज़ुबानी हैं …..
इन्होंने ज़न्नत को , जो जमीं पर लाने की ठानी हैं …
साथ देने को कई मरतबा भीग जाती हैं पलकें …..
समझों तो यही मोहब्त हैँ , ना समझों तो पानी हैं…..
पंकजोम ” प्रेम “