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समय जगा रहा हैं

‘समय जगा रहा है’

कठिनाइयां बहुत हैं,चेतावनी विविध हैं,
संघर्ष पथ कठिन हैं, जो एकता विहीन हैं।
जागों भारतीयों जागों, समय जगा रहा हैं,
वो अकेला ही क्यों दुष्कृत्य भगा रहा हैं ?
माँगता सहयोग वो सहयोग दो,
पाप बढ़ रहा हैं, अब रोक दो;
यह राष्ट्र क्यों विदेशियों को गले लगा रहा है?
जागों भारतीयों जागों, समय जगा रहा हैं;
आपसी लड़ाई को तुम रोक दों;
देश के हित में जान झोंक दो।
तुम ही युवा विवेक हो, तुम ही अब्दुल कलाम हो;
कर्म युँ करो की कल तुम्हें सलाम हो।
तुम ही शिवा महाराज हो, तुम ही हो राणा प्रताप;
फिर भी क्यों बढ़ रहा है देश में पाप,
यह देश क्यों सांप्रदायिक रंग मे रंगा रहा है?
जागों भारतीयों जागों, समय जगा रहा हैं।
जागों भारतीयों जागों, समय जगा रहा है

कवि:- सुरेन्द्र मेवाड़ा ‘सरेश’
आयु:- 14 वर्ष

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