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समर्पण भाव…

जब तुम यूँ समर्पण भाव से
मुझे देखते हो..
अनगिनत आकांक्षाएं उमड़ उठती हैं
ह्रदय में…
मेरी थर्राई देह तप्त लौह -सी दहक उठती है
जब तेरी सांसों का घूंट पीती हूं मैं…
जाग उठते हैं सोए हुए ख्व़ाब
तुम्हारा स्पर्श पाकर रोम-रोम
धान के पौधे-सा लहलहा उठता है..
धड़कनों की आवाज
कानों तक आने लगती है जब
कभी तुम अलिंगन करते हो मुझे…
तुम्हारी सांसों में वही महक होती है
जो पहले मिलन के
पहले बोसे में थी..
वही महक तुम्हारी पहचान बनकर
मेरी हर नब्ज में धड़कती है
और मेरे वजूद को जिंदा रखती है…

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