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सलीका

जान लेते अगर मनाने
का सलीका तुम तो
चंद दिन ज़िन्दगी के
तेरी चाहत में और
कुर्बान कर देते
और रो लेते कुछ रातें
तुम्हारी यादों में तड़पकर
कुछ और तुम्हें जान लेते
और बदनाम होते
इश्क में आपके
और गढ़ लेते हम
दिल की रचनाएं
कुछ भी ना मिला
मुझे तुमसे बस आंसुओं के सिवा
उलझी रातों के सुलझे
ख्वाबों के सिवा
किताबों में रखे
सूखे गुलाबों के सिवा
बेवफाई और रुसवाई के सिवा
गुमनामी की जिंदगी
और बेबसी के सिवा
तुमने कुछ नहीं दिया
मैंने उम्मीद भी नहीं की

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